शारदीय नवरात्रि के छठे दिन देशभर में श्रद्धालु मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार पूजा का महत्व और बढ़ गया है क्योंकि यह दिन ज्येष्ठा नक्षत्र, आयुष्मान योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग जैसे शुभ संयोग के साथ पड़ा है।
विवाह और सौभाग्य की पूर्ति की मान्यता
भक्त इस दिन बिल्व अभिमंत्रण और देवी प्रार्थना जैसे विशेष अनुष्ठान करते हैं। मान्यता है कि मां कात्यायनी की उपासना से विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं और समृद्धि तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। बंगाली परंपरा में रविवार को पंडालों में दुर्गा प्रतिमाओं का अनावरण हुआ, जबकि वैदिक परंपरा के अनुयायी सोमवार को मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान करेंगे।
मां कात्यायनी का उद्गम
स्कंद पुराण के अनुसार मां कात्यायनी का उद्भव परब्रह्म की दिव्य क्रोधाग्नि से हुआ। वहीं वामन पुराण में वर्णन है कि देवताओं की संयुक्त शक्तियां ऋषि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं और उनके स्वरूप से देवी का जन्म हुआ। इसी कारण उनका नाम पड़ा — कात्यायनी। महिषासुर का वध कर उन्होंने धर्म की रक्षा की।
स्वरूप और पूजा का महत्व
मां कात्यायनी को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में चित्रित किया जाता है। उनके दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और वरद मुद्रा है, जबकि बाएं हाथ में तलवार और कमल शोभित होते हैं। संध्या बेला में पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस समय भक्त मधु, पान के पत्ते और लाल वस्त्र अर्पित करते हैं।
श्रद्धा से मिलने वाले लाभ
पुरोहितों के अनुसार मां कात्यायनी की पूजा से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, शत्रु पर विजय मिलती है और भय व रोगों से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से अविवाहित युवतियां विवाह में सफलता के लिए मां की साधना करती हैं।
मंत्रोच्चारण
पूजा के दौरान श्रद्धालु यह मंत्र उच्चारित करते हैं:
“चन्द्रहासोज्ज्वलकारा शारदूलवरवाहना,
कात्यायनी च शुभदा देवी दानवघातिनी।”



