पटना: बिहार छठ महापर्व की तैयारियों में डूबा है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी (25 अक्टूबर) से शुरू होने वाला यह चार दिवसीय पर्व लोक आस्था, पवित्रता और एकता का प्रतीक है। सूर्य देव (भगवान भास्कर) को समर्पित यह पूजा न केवल धार्मिक सीमाओं को तोड़ती है, बल्कि समाज के हर वर्ग को जोड़ती है।
“छठ पूजा हर दिल को जोड़ने वाला पर्व है,” बताती हैं पटना की श्रद्धालु प्रतिमा शर्मा।
चार दिनों का तप और भक्ति
पहला दिन – नहाय-खाय
इस दिन श्रद्धालु गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और लौकी-चावल (कद्दू-भात) का प्रसाद बनाते हैं। इस दिन लहसुन-प्याज का उपयोग वर्जित होता है। लौकी-चावल को शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
दूसरा दिन – खरना
श्रद्धालु 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। गुड़ की खीर, रोटी और चावल का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है। गुड़ शरीर में फॉस्फोरस की मात्रा संतुलित रखता है और मौसमजनित बीमारियों से रक्षा करता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (षष्ठी)
इस दिन अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। घाटों पर रंग-बिरंगी टोकरी में ठेकुआ, लड्डू, फल और प्रसाद सजाए जाते हैं। महिलाएं छठी मइया के गीत गाती हैं और सामूहिक आराधना करती हैं।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (सप्तमी)
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है। व्रती लोग चावल, दाल, सब्जी, पापड़ और मिठाई से प्रसाद ग्रहण करते हैं। हर कदम पर गंगाजल का प्रयोग पवित्रता का संदेश देता है।
पवित्रता और सामुदायिक भावना
छठ पूजा बिना पुजारी के की जाती है। हर व्रती स्वयं अपने हाथों से पूजा सामग्री तैयार करता है। गेहूं, अदरक, गुड़, गन्ना, हल्दी, शहद, मौसमी फल आदि पूजा में उपयोग होते हैं।
सभी जाति-धर्म के लोग मिलकर घाटों की सफाई और तैयारी में जुटते हैं। “छठ के समय लोग अहंकार और भेदभाव भूलकर केवल आस्था में डूब जाते हैं,” प्रतिमा शर्मा बताती हैं।
छठ की पौराणिक और ऐतिहासिक कथा
छठ पर्व का उल्लेख ऋग्वेद, रामायण, महाभारत और स्कंद पुराण में मिलता है।
कहा जाता है कि माता सीता ने सबसे पहले इस व्रत को मिथिला में किया था। वहीं द्रौपदी ने भी अपने वनवास के दौरान महर्षि धौम्य के कहने पर छठ का व्रत रखा था।
यह पर्व स्वास्थ्य, समृद्धि और पारिवारिक सुख की कामना से मनाया जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि विशेष रूप से सूर्य भगवान को समर्पित है।
स्वास्थ्य और अध्यात्म का संगम
छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक डिटॉक्स प्रक्रिया भी है। व्रत, सूर्य स्नान और सात्विक आहार शरीर को शुद्ध और स्वस्थ बनाते हैं।
गंगाजल से स्नान और आंखों पर छिड़काव को कई रोगों से मुक्ति का प्रतीक माना गया है।
बिहार से लेकर दुनिया तक छठ की गूंज
आज छठ केवल बिहार तक सीमित नहीं है। अमेरिका, बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली में भी प्रवासी बिहारी समुदाय इसे बड़े उत्साह से मनाता है। यह पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक विरासत है जो पीढ़ियों और सीमाओं को जोड़ती है।
निष्कर्ष
छठ पूजा 2025 बिहार की आस्था, पवित्रता और एकता का जीवंत प्रतीक है। सूर्य देव की उपासना के माध्यम से यह पर्व हमें परिवार, प्रकृति और समाज के सामूहिक संबंधों की याद दिलाता है।
वास्तव में, छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं — यह जीवन जीने की एक पवित्र परंपरा है।



