भागलपुर: बिहार के भागलपुर जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां शिक्षा के मंदिर में तीन ‘फर्जी गुरुओं’ ने सालों तक नकली दस्तावेजों के सहारे नौकरी की और सरकार से वेतन उठाया। अब जब असलियत सामने आई, तो न केवल नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए बल्कि इनके खिलाफ वसूली और कानूनी कार्रवाई का रास्ता भी साफ हो गया है।
शिक्षा का अपमान: जब फर्जी दस्तावेज़ों से मिली नौकरी
गोराडीह प्रखंड के गोहारियो और धूरिया प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत तीन शिक्षक—बबीता कुमारी, नित्यानंद सिंह और चंद्रजीत कुमार—ने वर्ष 2014 से फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर बहाली पाई थी। इन सभी ने एक दशक तक क्लास के नाम पर सरकार का खजाना खाली किया।
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महिला की शिकायत से खुला पूरा मामला
कोमल कुमारी नामक एक स्थानीय महिला ने इन तीनों पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए परिवाद दर्ज कराया था। मामला जब जिला प्रशासन तक पहुँचा तो इसे गंभीरता से लिया गया। जांच का जिम्मा एडीएम (आपदा प्रबंधन) को सौंपा गया, जिनकी रिपोर्ट में तीनों को दोषी पाया गया।
जिला प्रशासन की जांच में सामने आई सच्चाई
शिक्षा विभाग के डीपीओ स्थापना शाखा ने 29 सितंबर 2024 को पत्र जारी कर यह साफ कर दिया कि तीनों की बहाली प्रक्रिया वैध नहीं थी। इसके बाद पंचायत को आदेशित किया गया कि तीनों को सेवा से मुक्त किया जाए।
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पंचायत की बैठक में सेवा से बर्खास्तगी तय
31 जुलाई 2025 को पंचायत सचिव और मुखिया ने संयुक्त बैठक कर तीनों शिक्षकों को सेवा से मुक्त करने का निर्णय लिया। यह कार्रवाई यह दर्शाती है कि कैसे सालों तक नकली दस्तावेज़ असली नौकरी में बदलते रहे और सरकारी तंत्र अंजान बना रहा।
अब होगी वेतन वसूली और दर्ज होंगे केस
तीनों शिक्षकों से 15 दिसंबर 2014 से अब तक का सारा वेतन वापस लिया जाएगा। इसके लिए सर्टिफिकेट केस दायर किया जाएगा। साथ ही, फर्जीवाड़े और सरकारी धन की धोखाधड़ी को लेकर कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। ACS डॉ एस सिद्धार्थ ने इस पूरे मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कार्रवाई का आदेश दिया है।
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वर्तमान डीपीओ का बयान: बबीता कुमारी, जो वर्तमान डीपीओ हैं, ने खुद को मामले से अलग बताते हुए कहा कि यह मामला उनके कार्यकाल से पूर्व का है। पूर्व डीपीओ ने ही पंचायत को पत्र भेजकर कार्रवाई का निर्देश दिया था।
शिक्षा व्यवस्था की नींव जब इस तरह हिलने लगे, तो सवाल न सिर्फ तंत्र पर बल्कि समाज की बुनियाद पर भी खड़ा होता है। नकली शिक्षकों का ये मामला एक चेतावनी है कि फर्ज़ीवाड़े के खिलाफ अब “शिक्षा मंदिर” भी खामोश नहीं रहेगा।


