पटना: 16 अक्टूबर 2025 को पटना हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में वरिष्ठ IAS अधिकारी संजीव हंस को मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) मामले में जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि ईडी (Enforcement Directorate) यह साबित करने में विफल रही कि हंस किसी भी “प्रोसीड्स ऑफ क्राइम” से जुड़े हैं या उनका कोई वित्तीय ट्रेल मौजूद है।
कोर्ट ने कहा – ईडी ठोस सबूत देने में नाकाम रही
न्यायमूर्ति चंद्र प्रकाश सिंह की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि PMLA की धारा 45 के तहत जमानत रोकने की कठोर शर्तें इस मामले में लागू नहीं होतीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि “इस स्तर पर ऐसा नहीं लगता कि याचिकाकर्ता उन अपराधों के दोषी हैं जिनका आरोप लगाया गया है।”
ECIR की नींव पर उठे सवाल
कोर्ट ने पाया कि ईडी की पूरी जांच की नींव जिस FIR (रूपसपुर थाना केस संख्या 18/2023) पर आधारित थी, उसे 6 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट पहले ही रद्द कर चुकी है। बाद में जो नया ECIR दर्ज हुआ, वह केवल एक सतर्कता FIR पर आधारित था जो अभी प्रारंभिक जांच के चरण में है।
कोई स्वतंत्र या ठोस प्रमाण पेश नहीं
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “रिकॉर्ड पर कोई स्वतंत्र या ठोस साक्ष्य नहीं है जो यह दर्शाए कि याचिकाकर्ता के पास किसी भी प्रकार के अपराध की राशि थी या उन्होंने उससे लेन-देन किया।”
WhatsApp चैट और बयान पर्याप्त नहीं
ईडी ने अपनी जांच में PMLA की धारा 50 के तहत लिए गए बयानों और कुछ व्हाट्सएप चैट्स पर भरोसा किया था। लेकिन अदालत ने कहा कि ऐसे अधूरे या असत्यापित साक्ष्य के आधार पर किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हिरासत में रखना न्यायोचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के मामलों – V. Senthil Balaji और Y.S. Jagan Mohan Reddy बनाम CBI – का उल्लेख किया, जिनमें कहा गया है कि “गंभीर आर्थिक अपराधों में भी जमानत को स्वतः अस्वीकार नहीं किया जा सकता।”
जमानत की शर्तें
कोर्ट ने आदेश दिया कि संजीव हंस को ₹20,000 के निजी बांड और दो समान जमानतदारों पर रिहा किया जाए। साथ ही उन्हें—
- हर तारीख पर ट्रायल कोर्ट में उपस्थित रहना होगा।
- देश से बाहर नहीं जा सकेंगे और अपना पासपोर्ट कोर्ट में जमा करना होगा।
वकील का बयान – न्यायपालिका पर भरोसा कायम
संजीव हंस के वकील डॉ. फारुख़ खान ने कोर्ट के आदेश के बाद कहा कि यह निर्णय “न्यायपालिका में विश्वास को पुनः स्थापित करता है और यह सिद्ध करता है कि बिना ठोस कानूनी आधार के किसी की स्वतंत्रता छीनी नहीं जा सकती।”


